Saturday, August 1, 2009

सच


कबीरा तेरी लेखनी अब होने लगी बदनाम,
लिखती है क्यूँ सच ये जब चले झूठ से काम
चले झूठ से काम कसम क्यों गीता की खाए
कोई तो झूठ बोलता है कोई कानून को समझाए

Kabir

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इश्क का आगाज़ क्या अंजाम क्या वहशियों को मसलिहत से काम क्या जो भी था रहे वफ़ा में खो गया अब पूछते हो हमारा नाम क्या