Saturday, August 2, 2008

निकल गया अरमान कबीराक्या कर रहा था बात
रहा गैर का गैर यहाँ तेरी पूछे न कोई जात
अपने घर को देख कबीरा अपने घर का कर इन्तेजाम
औरों के घर ख़ुशी और गम में बता तेरा क्या काम

कांवड़ भरने को चला हो कर रंग बिरँगा
बापू मांगे पाणी तो मार पीट और दंगा
कुछ न हुआ जब बसे गाँव में हिंदू मुसलमान
मन्दिर मस्जिद के लिए हो गए लहू लुहान




Kabir

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इश्क का आगाज़ क्या अंजाम क्या वहशियों को मसलिहत से काम क्या जो भी था रहे वफ़ा में खो गया अब पूछते हो हमारा नाम क्या