अपने घर को देख कबीरा अपने घर का कर इन्तेजाम
औरों के घर ख़ुशी और गम में बता तेरा क्या काम
आज इंसान और उसकी दुनिया कितनी बदल चुकी है जीवन के मूल्य और अस्म्ताये कहीं खो कर रह गयी है बदलाव अच्छा है ,लेकिन कुछ भी तो अच्छा नहीं हो रहा है....देखो न इस हालत पर कबीरा कैसे रो रहा है
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Kabir
- kabira
- इश्क का आगाज़ क्या अंजाम क्या वहशियों को मसलिहत से काम क्या जो भी था रहे वफ़ा में खो गया अब पूछते हो हमारा नाम क्या
1 comment:
औरों के घर ख़ुशी और गम में बता तेरा क्या काम
" han hona to yhee chayeye, pr aaj kul hotta nahee hai, log dusron ke ghron mey jyada tak jhank kerteyn hain"
Wonderful thought.
Regards
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