Tuesday, December 30, 2008


गए समय को क्या विदा क्या नए बरस की आस
कबीरा घर में मौज है तो हर दिन है मधुमास

Thursday, September 18, 2008


दौलत सोहरत से नही बनता है कोई अमीर
"खुशी" है पास नही तो जीकर करे क्या कबीर

Friday, September 12, 2008


लिखने लगे कुछ लोग अब सीधी सच्ची बात
लेकिन मुझको नही सुहाती इतनी अच्छी बात
इतनी अच्छी बात का अब नही ज़माना कबीर
झूठी बातों से चलती आई सदा दुनिया की तकदीर

Sunday, September 7, 2008

Saturday, August 2, 2008

निकल गया अरमान कबीराक्या कर रहा था बात
रहा गैर का गैर यहाँ तेरी पूछे न कोई जात
अपने घर को देख कबीरा अपने घर का कर इन्तेजाम
औरों के घर ख़ुशी और गम में बता तेरा क्या काम

कांवड़ भरने को चला हो कर रंग बिरँगा
बापू मांगे पाणी तो मार पीट और दंगा
कुछ न हुआ जब बसे गाँव में हिंदू मुसलमान
मन्दिर मस्जिद के लिए हो गए लहू लुहान




Kabir

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इश्क का आगाज़ क्या अंजाम क्या वहशियों को मसलिहत से काम क्या जो भी था रहे वफ़ा में खो गया अब पूछते हो हमारा नाम क्या