Saturday, August 1, 2009

सच


कबीरा तेरी लेखनी अब होने लगी बदनाम,
लिखती है क्यूँ सच ये जब चले झूठ से काम
चले झूठ से काम कसम क्यों गीता की खाए
कोई तो झूठ बोलता है कोई कानून को समझाए

Tuesday, April 21, 2009


अपने दुःख को क्या कहें हम मांगे सबका सुख
देख दुखी इंसान को हम हुए स्वयं से विमुख

Tuesday, December 30, 2008


गए समय को क्या विदा क्या नए बरस की आस
कबीरा घर में मौज है तो हर दिन है मधुमास

Thursday, September 18, 2008


दौलत सोहरत से नही बनता है कोई अमीर
"खुशी" है पास नही तो जीकर करे क्या कबीर

Friday, September 12, 2008


लिखने लगे कुछ लोग अब सीधी सच्ची बात
लेकिन मुझको नही सुहाती इतनी अच्छी बात
इतनी अच्छी बात का अब नही ज़माना कबीर
झूठी बातों से चलती आई सदा दुनिया की तकदीर

Sunday, September 7, 2008

Saturday, August 2, 2008

निकल गया अरमान कबीराक्या कर रहा था बात
रहा गैर का गैर यहाँ तेरी पूछे न कोई जात

Kabir

My photo
इश्क का आगाज़ क्या अंजाम क्या वहशियों को मसलिहत से काम क्या जो भी था रहे वफ़ा में खो गया अब पूछते हो हमारा नाम क्या